Sunday, November 8, 2015

अमृत बिन्दु

आसमा के तारे जैसे मेरे भविष्य हैं
जो हरेक दिन चमकति हैं
मेरा नजर उस तरों पर है
जो मेरो ललित्यको फुलाती है

अकिन्चन अनवरत गंगा
मेरा व्यवहार है
जो निरन्तर छलकती है
हिमालय कि कंचनजंघा से
मेरा हृदय आल्हादित करता है

बहती गंगा बढ्ता योवन
जीवनको आसिंचन करता है
धैर्यता शाहस पराक्रम कि
एकाकार से अप्रकेत सलिल कि
अनुभूति होती है
सत्-चित-आनन्द निरन्तर बरसती है
शशी धाराओं से एक एक अमृत बिन्दु |



योगी बालक हरिद्वार 

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