Friday, December 30, 2016

DSVV YOGA_Batch No - 13



           मुझे लिखने कि आदत है । कुछ भावनाएँ परीक्षा के पहले से हि ध्यान में आ रहे थे । सोते समय मै जब चिन्तन करता था तब भी यह सोंच मेरे अन्दर उमड रहा था । कि मुझे देवं सं. वि.वि में बिताए हुये एक साल कि समिक्षा करनी चाहिये । पता नहीँ यह समीक्षा, भावना है या साहित्य । फिर भी यह बात एम.ए.÷एम.एस्सी पूरी टिम शिक्षक गुरुवर्ग और देव संस्कृतिका है । जो अभि मौका मिला घरकी छावँमें टाईप कर रहा हूँ ।

                जीवन ने आजतक कि अनुभव में मुझे बहूत हि उतार चठाव दिया है । कहाँ मै एकबार मास्टर कर चुका आदमी अच्छे खासे नोकरी कर रहा । अचानक ध्यान में प्रेरणा हुई कि अभि पढ्ना बाँकी है । उसी दिन चल पडा था मै श्रीधरको लेकर हरिद्धार । ले लिया था प्रवेश देव संस्कृतिमें । चारों तरफ हरियाली बाताबरण और मनोरम दृश्य के बीच सुन्दर कलासे सुसज्जीत महाकालका मन्दिर जैसे एक स्वर्गका नमुना हो । रास्ते ,गली,गौशाला,आम्रपल्ली,खेल मैदान । और दिब्य आध्यात्मिक उर्जाका केन्द्र यह सब अनुभव मैने २०१३ मे ही अनुभव किया था । उसी समय मुझे यहाँ कि दिब्यताने पकड लिया था ।
                पता नही मै यह सब क्यों लिख रहा हूँ । मै ईस समय घरपे छुट्टी में हूँ । २१ जून के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के लिए मैं छुट्टी होते हि चल पडा था बहाँ से । रास्ते में मुझे उतना फोन प्रयोग करने कि आदन नहीं है । अफ कर दिया था । सुबह जब बलरामपुर पहुँचा तो समय देखने के लिए फोन को अन किया । फोन पे ५,, नोटिफिकेसन थी । तीन मिस कल ईन्डियन नब्बर की २ बहन ने घर से फोन किया था और देखा भी नहीं नए नं पे फोन लगाया सुनिल सरकी थी कुछ काम था सायद लेकिन बताया नहीं । आने से पहले सुनिल सर से मिलनेका मन था । फिर भी परीक्षा खतम होते ही घर जाने कि योजना से नही मिल पाया था । २१ जून के लिए कुछ सुझाव लेने  थे । सरने बिन बताए चलने कि नाराजकी जताई मुझे अफसोस हुआ और माफ माग लिया । रास्तेभर मुझे सुनिल सर से न मिलने की बात से अफसोस हुई । कुछ समयबाद नेपालगंज पहुंचकर ह्वाट्स्याप खोला कुछ मित्रों ने भि बिन मिले चले जानेसे नाराजकी जताई थी म्यासेज करके उनको रिजन बताया ।
                एक सालभरका समय १२ महिने ५२ हप्ते और ३६५ दिनका होता है । लेकिन यह समय कब और कैसे चला गया पता ही नही चला । लग तो यह रहा है कि कल आए थे लेकिन एक साल चल पडे । हम से सिनीयर वालों को बिदाई कि मिठाई और उपहार देते वक्त हि कुछ अहसास हुआ था कि अब हम भी देव संस्कृति के पुराने छात्र बन चुकें । खेलते खेलते हँसते हँसते समय ने अपना काम किया हमने अपना काम । ईस बिच में कुछ देर बैठकर कल के लिए सोंचने का वक्त हि न रहा क्यों कि योजना पहले से फिक्स थी काम कर रहे हैं । बस यही कारण है । समय चला गया हमे पता नहीँ चला । देव संस्कृति मे विशेष तीन चिजे रहीँ हैं । जिनका जिक्र आवश्यक है । १. शिक्षक एवं गुरुवर्ग २. पूरे योग ग्रुप एवं ३. देव संस्कृतिका वातवरण । तो देखते हैं सभीके साथ बीताए कुछ पल की यादें कुछ शब्दों मे ।
१.शिक्षक एवं गुरुवर्ग ः
                शिक्षक एवं गुरु ऐसी शब्दावली है । जिसकी ब्याखा जितना करो उतना और बढ जाता है । क्यों कि जो हम हैं । वह भी उन्हीका देन है । मेरी सबसे पहिली भेट सुरेश गुरु एवं सुनिल गुरु से हुई । योग विभाग के कार्यालय पर । मै अन्तवार्ता के लिए वहाँ था और मेरा अन्तरवार्ता लेने के लिए वैठे थे सुनिस गुरु एवं सुरेश गुरु । सुनिल गुरुकी पहला प्रश्न था अंग्रेजी आता है । मैने तत्काल उत्तर दिया नहीँ आता । जैसे मैने नही बताया उसी वक्त सुरेश गुरु बोले तुम्हारा एडमिसन होना सम्भव नहीं दिख रहा । मैने मानव उत्कर्ष मे फारम डाला था । तभी वह मुझसे अंग्रेजी का बात कर रहे थे । कुछ देर बाद सोंचकर सरने बोला ठिक है तुम एक निवेदन रजिस्टार के नाम पर विषय परिवर्तन के लिए डाल देना । मानव चेतना में हो सकता है । इतना कहकर मेरा अन्तरवार्ता खतम हुई थी । और नामावली निकल पडी थी और पढाई सुरु किया था ।
                पहले से हि बोलने कि आदत । हँसने हँसाने कि जीवन से गुजरा मेरा समय यहाँ भी वही रफ्तारमें आगे बढ रहा है । आजतक के समयमें हम सभी ने बहुत से गुरु की अनुभव की होगी मगर यहाँ जो गुरु मिले वह उन सब गुरुओं से कुछ भिन्न हैं । प्यार और सहृदयता से मनको लुभाने वाले कामता सर जैसे लगता है उनकी आवाज स्वर्गकी हिमगंगाओं मे से टपक रहा हैं । लडकियाँ पढाते समय भी अनुरोध करते हैं । हिन्दी वाला शान्तीपाठ सुना दिजीए ना ? वाणीकी लालित्य सभीको नहीँ मिलती और जिसको मिला है उसने संसारको लालायित किया है । अकेले चलना हर समय मन्द मुस्कान की बौछार मारना , पढाते वक्त पकडती शब्दों एवं भावभंगीमा कि अदा हि अलग है । जिसका मै अनुदर्शक हूँ । मूझे लगता है उनकी ऐसी व्यक्तित्व कि प्रशंसा करने वाले सायद और भी बालक बालिकाएँ होंगे । हम लोग योग पढते हैं । योगमें ऐसे सुन्दर लालित्य पुरुषको सायद भक्ति योगी कहते होगें मुझे लगता है । जिसको जो कोई मिलता और बोलता है । उसके अन्दर भी प्यारका बौछार सुरु हो जाती है । कहते हैं जिवनको निर्मल एवं अच्छा बनाना हो तो हँसना सिखो मगर नकली नहीँ सकली हँसो । उनके अन्दरका जो भाव है वह सब शब्दों के माध्यम से निकल रहें है । मुझे लगता है सर ने सायद विशुद्धि चक्रको साध लिया है । जिसने जहाँ से जीवनको समझा वहीँ समर्पित किया अपने गुरुको चरणमें । मैं जीवनके भ्रमण कहीँ भी जाउँ मगर मेरो भावोें के गहराई से एक तरंग निकलेगी तो वह  कामता सरकी भाव से जुडी होगी । 

              
बैच no १३ ध्यान करते हुए
 
कामता सर की हँसने हँसाने और लुभाते हुए पढाने कि आदत से हो सकता कई विद्यार्थी गम्भीर रुपसे नहीं ले पाते मुझे भी यही हुआ कमजोरी हम सबकी है । जो बताते उसपे अमल नही करते । पाढाई के कुछ समय बित गए मगर मेरा अभी तक रबर नेती नही हो रहा था प्रथम परीक्षण परीक्षा नजदीक आगई थी । प्रायोगिक परीक्षा सुनिल सरको लेना था । मेरे साथ साथ अन्य लडके थे जिनका भी रबर नेती नही हुआ था । सबकी डर बढ गयी थी उनको यह लग रहा था की सुनिल सर बहुत खरे हैं कडा हैं उनके सामने लुकने छुपने वाली बात नहीँ चलती । वह किसिको भी नहीँ छोडते । सरको लेकर अनेक विद्यार्थीयोंमें ख्वावसा बना । समय बिता परीक्षा आ गयी सुबह क्लिनजिंग मे सब आ गए । जिस जिसका होता था सब ने रबर नेती जल नेति किया । दो चार बचे उसमें एक मैं भि था । बीच बीचमें सुनिल सर जोर से डाँटते थे बच्चे जल्दीसे रबरको नाक मे डालने कि कोसिस करते मगर क्या करें जीन्दगी मे पहली बार नाक के अन्दर कुछ डाल रहें है । अन्दर जोरसे खुजलाहट होती है और झटसे निकाल लेते , कभी कभी रबर अन्दर जाकर अटक जाता था क्यो कि नाकों के छिद्र खुला नहीँ था सायद , आँखों से पानी गीरता रहता , नाकों से भी । बगल में बैठकर नेती करने वाला बोलता था कमल भैया आपका आँख लाल हो गया है । इतने में सुनिल सरकी नजर मेरे उपर पडी और बोले कुछ भी आज तक जो भी किया होगा मुझसे मतलब नही आज तो तुझे बिना करवाए यहाँ से छोडूंगा नहीं । सर की आवाज सुनते ही शरीर मे एक विद्युत तरंग होने लगा और महसुस हुआ चाए कुछ होजाए आज करना ही पडेगा । थोडासा रबर को लेकर नाकमे धिरेसे डालने लगा आधा से ज्यादा अन्दर गया मुह मे निकलने का नाम नहीँ ले रहा था । पता चला बह तो पेट कि तरफ जा रहा था झट से फिर रबरको निकाला रबर के साथा मुह से खुन भी निकल रहा था । आँख उठाकर इधर उधर देखा मेरे सामने ललित था उसका भी नही हो रहा था जोर जोर से खाँस रहा था । सर उसको बोल रहे थे सर्टिफिकेट करके भी तेरा नहीँ हो रहा है तुझे भी नहीँ छोडुंगा जल्दीकर सब चले गए । देखा सब चल गए थे खाली दो लोग ही बँचे थे । कुछ देर पहले राम प्रसाद भी खाँस रहा था अव वह भी नहीँ था । आवाज आ रही थी बाहर से कमल भैया को सरने आज पकड लिया है । मेरे कानो में पड रहा था । बाहर कोई कुछ भी कह रहा हो मुझे तो रबर नेती किसी भी तरह आज करके ही जाना था । फिर से सर की आगमन हो गई थी बोलने लगे जल्दी कर आँख तेज होगा चेहरा चम्केका इसकी फायदे बहुत हैं पहले करके तो देख सर एैसे हि बोल रहे थे मैं रबर नाकमें डालने का प्रयास कर रहा था रबर अन्दर गया दो अंगुली अन्दर डाला और खाँसते हुए रबरको पकडा उस समय शरीर एकदम से काँफ रहा था फिर भी रबर को मुह से बाहर निकालकर अन्दर बाहर करने लगा अन्दर कुछ खुजलाहट जैसी हो रही थी फीर भी करना ही था इतने में सर ने देख ली और बोला .... देख हुआ कि नहीँ तुम लोग खामखा डरते रहते हो । आज पहली बार मेरी रबर नेती हो गई थी मैं एकदम खुश था अन्दर अन्दर सरको धन्यवाद दे रहा था । क्यों कि सर की ही बजह से मेरी रबर नेती सम्भव हुआ था मैं वह दिन कभी नही भुलता अभी भि याद आति है और हँस पडता हूँ । उसी दिन से मुझे सुनिल सर अच्छे लगने लगे थे कुछ भी हो तीन सालतक मैने भी बच्चों को पढाया था । सर बच्चों को डाँटते हैं , कठोरता अपनाते हैं मगर कभी वह कटुता नहीँ अपनाते बच्चोंको प्यार करते हैं । यह सब अनुभव मुझे बादमें अनुभव होते चला गया क्यों कि मैं भी उसी तरहका शिक्षक रहा करता था डाँटता तो बहुत था मगर प्यार भी करता था । जीवन दोनो चीजों से चलती है धुप भी और छावँ ।
               
 यहाँ कि हरेक परिस्थिती मेरे लिए लाभकारी रुपसे आगे बढ रही । दश साल पहले जब गुरुकुल मे रहकर अध्ययन करता था तब की परिस्थतीयाँ यहाँ भी घटित होती थी क्यों कि मुझे शिष्य से लेकर गुरु तक की अनुभूति मिल रहा था । पाणिनी भवन में जब पहली बार श्रीधर और मैं आए थे तो सबसे पहले कृष्णवर्ण के लजालु स्वाभाव के विश्वजीत मिले थे उन्ही से मेरा परिचय पहला था छात्रावास की दुनिया में हम लोगों से पहले ही वह आ चुके थे । धिरे धिरे ब्लक की कमरे भरते गए एक एक करके अभिषेक,अमित,अभिमन्यु,आषिस ,अंकुश , देवब्रत,दिपक,देविलाल,सुभम,अजय,रतन आदि एक एक करके परिचित होते गए एक नयाँ परिवार बना नयाँ माहौल सभी अभी २० २२ सालके इर्द गिर्द के थे चन्चलता चपलता,उत्साह,उत्सुकता, सभी रंग रंगिले थे मगर हम लोग उन लोगों से सायद कुछ उर्म से बडे थे वह सब भैया बुलाते थे । मेरे सामनेका रुम अभिषेक और रतनका था वह लोग फिल्मी गानेके शौकिन थे हमलोग ध्यान के । जब भी जग जाते तभी से गाने सुरु हो जाते । मगर मन निर्मल था स्वच्छ साफ कहा भी जाता है जीवनको आनन्दीत तरिके से जीना चाहिये सायद उन लोगों कि समझ वह लोग ठिक हि करते  थे । कभि कभि लडते झगडते भी थे और मैं डाँट भी देता था । खेलने कुदने का समय यही है उसीका भरपूर फायदा उठाते थे वह लोग । 

                भैया जी सिधे साधे आदमी वह सिधा सोंचते सिधा बोलते लेकिन उटपटांग स्वभाव वाले देवब्रत,अमित,अभिषेक उसे जब मौका मिले तभी परेसान करने लग जाते परेसानी गाली में उतर जाता और गाली लडाई पे और कुछ देर बाद बन्द । दुसरे दिन बही फिर वही हरकत । कहा भी जाता है कि इतना भि सिधा मत बनो कि कोई पकड के तोडने  का प्रयास करे । भैया जी मुझे बताने आते देखिए कमल भैया यह लोग मुझे तंग कर रहे हैं । वह बोलते भी थे कमल भैया को बता दुंगा मत तंग करो पाण्डे सरको बता दुगा आदि आदि । सुबह झगडा करते सामको एक दुसरेको सहयोग करते । दुख दर्द पे मालिस करते । यह सब देख मुझे अच्छा लगता और अनुभव होता कि यह सच में एक घर है । माँ डाँटती है और फिर फकाती फुलाती और सुलाती भी है । यहाँपर माँ भी यही हैं और पिता भी बच्चे सच्चे सब । सभी की भुमिका खुद मिल बाँटकर निभाते थे । 

समय कब और कैसे चला गया पता हि नहीँ चला कब परीक्षा आया मोनोग्राफ,प्रोजेक्ट,असाइनमेन्ट,फाईल आदि आदि ने सभी को इस तरह से पकड के रख्खा ताकि कोई दिग्भ्रमित न हो । इस जगह की खासियत यही है कि समय सारिणी मे हि सम्पूर्ण कामों का सम्पादन । कब कैसे सालभर बिते पता नहीँ चला अब तो दुसरा साल भी सुरु हो गया है । पुराने बच्चे चलृ गए नये बच्चे आ गये हमलोग सिनीयर हो गए । कुछ जिम्मेदारी महसुस हुई और लगा अब ज्यादा समय नहीं है पढाई खतम होने के लिए ।

यशपाल नाटक जानता था उसको थियटर की ज्ञान थी , वह कभी कभी बच्चोंको अपने कक्ष मे अभिनय सिखाता भी था । इसीने मुझे मिलवाया था पहली बार गाना इडिट करने के लिए रेश्मा , सुश्रिता,आरती एवं सुनन्दा से । पहले विज्ञापन रेडियो कार्यक्रम बनानेकी मेरी अनुभव की बजह से मुझे यह काम आता था । वैसे कहें तो पुरा योग परिवार मेरा एक अंश है मगर समय एवं परिस्थितीयाँ आदमीको किसी न किसी से ज्यादा हि अपनत्व से बाँध देदा है । उन लोगों की नृत्य प्रति रुचि लगन और समुहमें काम करने के तरिके से हम सब सिनर्जी समूह के सदस्य बने और एक गौरवका नमुना बना योग विभागका सिनर्जी नृत्य समूह । रेश्मा केरला की है विशेष रुपसे क्लासिकल भरत नाट्यम उसे आता था और उसकी रुचि भी बही था और सब आधुनिक नृत्यमें पारगंत थे लेकिन देव संस्कृतिमें अपनि प्रतिभाको उसी अनुरुप ढाल चुके थे । यह भी कह सकते हैं कि देव संस्कृति में आधुनिक तडक भडक वाली नृत्य नहीं चलती यहाँ एक सभ्य एवं गौरवान्वित भारतीय परम्पराकी गरिमा नृत्य होती है । उसी गरिमाका एक उत्कृष्ट नाम था सिनर्जी नृत्य समुह । योग समूहमें कूल चार कक्षाएँ चलति है विज्ञानके दो कक्षा और कला के दो कक्षा कूल मिलाकर हम करिव ८० बच्चे थे । जीवनकी डोर हर समय हरेक के जीवनमें नयें नयें अन्दाज एवं अनुभव दिलाती जाती है । आज विता हुआ पल कल सुनहरा लगता है और एक पाठ पढाके जाता है कि समय किसी के लिए रुकता नहीं सबके लिए बराबर चलति है । सभीकी चाहना होति जीवनको सहेजु और खुसहाल जीन्दगी जिऊ उसके लिए परीश्रम की जरुरत पडति है । परिश्रम हि भविष्यका वह बीज है जो सुन्दर फूलोंको फुलाता है ।
समय योगका चल रहा है कल योग में अवसर दिखेगें ऐसी भावनाके साथ आज हम जैसे विद्यार्थी उस विद्याको ग्रहण कर रहे हैं जो अपने आपमें रहस्यमयी विद्या है । जिसका अन्त अपने आपको मिटाने में है । वृत्तियोंको निस्तेज करनेमें है । मगर आधुनिक होडबाजी और परिवर्तित विचारधाराओं के कारण अधिकांस बच्चे इसके तात्विक पक्षको पहचान नहीँ पाते मगर भौतिक जीवनके लिए इस विद्याको सहारा बताते हैं । वह भी कुछ हद तक ठिक हि है कुछ भी न होने से अच्छा उसका कुछ अंश हि हो । भगवान करें हम योगको हि अपना सहारा बनाएँ और आगे बढें क्यों कि संस्कृतिके संबाहक बने इसीके माध्यम से हमारी सभ्यता फिरसे लालध्वज पूरे ब्रह्माण्ड में निर्मल हवाओं के साथ डुबुल्कि मारता रहे ।
हरेक ब्यक्ति दार्शनिक है सभी के पास मन , बुद्धि, अहंकार, चित्त अवस्थित है । सभीलोग अपने अपने समझ से वाकिफ हैं । अपने अपने तरिके से यह समयको समझ रहे है फर्क इतना है कोइ कहता है कोइ कहता नहीं मगर मैं लिखता हूँ । यह सब भावना कहूँ तो किससे क्यों कि मैं हूँ हि अकेला और सुनाने से अच्छा है लिखना जिससे मनको शान्ति मिलति है । कक्षा के सभी लोग अच्छे हैं समग्र में यह एक घर है जैसे पृथ्वीको चलने चलाने में धूप छाँव सर्दी गर्मी की आवश्यकता होती है उसी तरह यह घरको चलने में भी कभी खुसि कभी गम होना आवश्यकता पडति है जैसे चावलको पकने में पानी जैसी ठण्डी चीज और आग जैसी तेजकी सहारा मिलना पडता है । जीवन हरेक समय एक हि रफ्तार से चलति नही है । यह तो वह गंगा की कलकलता है जो कभी पत्थरों पे ठुकराति है तो कभि फूलों से । जीवन इसीका नाम है इन दोनो के सहारे हि ज्ञानका अनुभव सम्भव होता है । सभी लोग सम्भावनाओं से भरे पडें हैं किसीका कम किसीका ज्यादा अगर चाहें तो जीवनको सुरम्य बना सकते है ताला और चाभी उन्ही लोगों के पासमे हैं । मैं किसीका मित्र भी नही और दुष्मन भी नहीँ वस इतना है मेरी आवश्यकता पडी तो हरसम्भव सहयोग करता हूँ क्यो जीवन ही अकेला है, कर्म भी अकेले कर रहा हूँ और कर्मफल भी अकेला ही भोग रहा हूँ । अपनी अपनि बुद्धिसे सभी दोस्तों ने भुझे परखा होगा समझा होगा जिन जिन लोगों ने जो जो समझा सच मे मै वही हूँ क्यों कि मै आइना हूँ जैसी चेहरा सामने आएगी वैसा हि दिखाउँगा । और मेरी अनुरोध भी यही है कि जैसे जैसे भुझे समझोगे वैसे हि समझना क्योंकि समझा अपने से जाता है दूसरों से नही । मेरी बस भावना है भावनात्मक रुपमें सभी लोग एक हैं फर्क कुछ भी नहीँ है । यह शब्द भी मेरे नही मै तो लिखमात्र रहा हू सम्पूर्ण शब्द एवं अनुभव सभी लोगोके हैं जिनकी निर्मल आत्मा इसमे निवास करती है । यह कथा ,कहानी,उपन्यास,कविता, कुछ भी नही है यह एक सरल शब्द है जो मात्र भावोंको प्रकट हुए हैं । , एक बालक की भावना जैसे बालक रोते चिल्लाते खेलते अपने अनुभव से जिवनको परखता है उसी तरह यह शब्द बाहक बालक भी अपनी अनुभवका एक अंश यहीँ शब्दों के साथ समेटता है । यह किसीको समझाने किसीको प्रमाणित करने या अपनेको बडा बनाने के लिए नहीँ हम सब समझें । यह उन दीनो की बात है जब हम किसी सुन्दर समयकी अनुभव किया करते थे । पता नहीँ कल कहाँ किस हालात पे हम मिले या न मिले लेकिन यह संस्कार तो संस्कार है जिनका भरपाई हरेकको करना हि पडेगा क्यों कि कर्मसिद्धान्त यहि कहता है । 

साथमें रहते हैं । कभि किसिकी वजह से किसीको कुछ समझ बनानी पडती है , कभी किसीको । मेरी वजह से भी किसीको दुःख पहूँचा होगा । किसी दुसरे के वजह से मुझे भी कुछ सहना पडा है । आदमी हैं गलती सबसे हो जाति है । जीवन इसीका नाम है । समय वितता रहा लोग अपने अपने घुन में है । एकदिन कि बात है कुछ दिनो से सुमितका तबीयत खराब थी  । सब अपनी अपनी अकल लगा रहे थे दबा भी चल रहा मगर ठिक नहीँ हो रहा था । कोई कहता है यह उसकी वजह से है , नही उसकी वजह है लेकिन वजह क्या थी वह भगवान को ही मालुम था । मगर आदमीको बात करने के लिए कुछ मसाला चाहिए । बात बात ही होती है सब अपनी अडकल लकाकर बात कर रहे थे । शान्तिकुञ्ज जाना, कभि एक्यूप्रेसर,जितनी भी रास्ता हो सकता है सभीकी तरफ से उसकी इलाज चलरहा था । दिखने में उदास उदास रहता कुछ बताता भी नहीं । कोई जाता भी पुछता सुमित क्या बात है ? उसको कुछ बताता नहीँ था जो पुछने जाता उसको ही निरास होकर लौटना पडता । यहि दिनचर्या सभीका चल रहा था लेकिन पता किसी को नहीँ चल रहा था । बार बार मुझे खयाल आ रहा था कि इसे एकबार उषा मैम से मिलवाना चाहिए । ऐसे एकदिन बोल हि दिया सुमित उषा मैम से मिलते क्या कहती है कुछ तो अवश्य कहेगी । मेरी बातों को सुनकर उसने कहा था । देखते हैं यार .... उसके कुछ दिन बाद फिर मैने उसे फोर्स करके बोला आज किसीभी तरिकेसे चलते हैं । ४ः३० बजे तक तो मर्मकी कक्षा चलती है उसके बाद चलेगें मैने कहा । साम हुआ ५ बजा हम दोनो मैम के पास गए मिले कुछ देर प्राँर्थना की ओर समस्या पताकर मैम ने उसे बताया और कुछ समझाया भी । इतने में उसे आश्चर्य लगा की मैमको कैसे पता चला समस्या यह थी । उसके बाद थोडा खुलने लगा बोलने लगा , बात करने लगा और धिरे धिरे ठिक होता गया । 

दुसरा सेमेस्टर चल रहा था । अब शोध विधि पढ्ना था सभीका एक साथ कक्षा लेती थी रिना मैम । उसमें चारों कक्षा के सभी बच्चे सामिल रहते थे । मैमको सम्हालना मुसकिल सा होता था फिर भी मैम किसी तरह सम्हाल लेति थी । हर कक्षा मे एक न एक बच्चा ऐसा था जो थोडा बहुत सरारत करते थे । उनकी कक्षा मे भिड भी होती थी इस लिए उन लोगों के लिए वह समय उचित था फुरापात करने के लिए । इसीलिए वहसब मौकेका फाएदा लेनेकी सोंचते थे । कभी बोलना चिल्लाना, हँसना और फजूल की प्रश्न पुछना , यह उन लोगों को अपनी तरिका थी । एक बच्चा कोई कुछ बोल भी कक्षा मे तो उसकी बातपर हँसी बनाना ऐसा चलता था । पहले तो मुझे लगता था यह कैसे मास्टर की विद्यार्थी बन गए फर्जी तो नहीँ है । फिर बाद में सोंचा सायद मै हि कुछ बडा हूँ अभी समय ही ऐसी है सभी ने इस समयको पार किया है वही होगा यह समय का खेल है । इनका नही ऐसे सोंचता और अपने आपको समझाता । एक दिन मैम मिन मिडीयन पढा रही थी उसी बीच में एक लडकी ने कुछ प्रश्न मैम से कि इतने मे पिछे से लडके चिल्लाने लगे ओ................... उसके बाद पूरा कक्षा हँसने लगा । मैम जोर से चिल्लाई सबको डाँटने लगि बच्चे हो नर्सरी के ? तुम्हे समझ नहीँ क्या करना चाहिए आगे टिचर पढा रहा है , कुझ भी समझदारी नहीँ है । देखो मै चिन्मय भैया से कम्प्लेन करनी वाली हूँ सम्हल जाओ । इतनी बात सिरियस होकर बोतती थी फिर इतने में थोडा थोडा मुस्कुराने लगती थी इसकी बजह से बच्चे फिर भी हँसने की माहोल बनाने की कोसिस करते थे । बच्चे को कोई भी हल्का बाताबरण मिले वह उसीकी तलास मे रहते थे की कोई बहाना मिले और आनन्द लें । कक्षा मे दो तीन बच्चे मात्र ऐसे थे जो ऐसे माहोल बनाते थे और सब प्रायसः समय शान्त रहते थे । और कुछ ज्यादा हि शान्त थे । लेकिन कक्षा में कुछ भी ऐसी हल्ला चलति थी तो उसके विपरित बात कोई नहीँ करता था । बहुत लोगों को तो समझ भी अच्छे तरह से नहीँ होता था कैसे पास होंगें पता नहीँ मैम तो केसे पढाती है एसी बात करते रहते । समय बिता परीक्षा आयी सभी ने फेल होने कि डरसे उसी विषका तैयारी अच्छा की । क्यो कि अगले साल ज्यादातर बच्चे उस विषयमें फेल थे । लेकिन आश्चर्य की बात तो यह हुआ जब रिजल्ट आया उस विषय में सभी पास हो गए लेकिन दुसरी विषय ब्याक रह गयी वह भी कुछ कारण बस । सबलोग खेलते हँसते हँसाते जो विषय कठिन समझ रहे थे उसको सहज ही पास कर गये  किसीको पता नहीँ चला । जब रिजल्ट देखा गया तो ज्यादेतर अंग वही विषयके थे जिस विषयको पढाते वक्त वक्त ज्यादा हल्ला मचाया करते थे । 

शिक्षा में जब चार दिवार आने लगते वहाँ वह चीज नह्ीं जो चीज हम उस जगह खोजते हैं । आज तक ऐसी  विह्वविद्यालय नहीँ होगा जहाँ हल्ला नही होता होगा । यह तो युवाँओं प्रकृति है उनकी मनस्थिती समझ के उनसे बडे से बडे काम ले सकते हो । अगर यह नहीं कर पाए तो उनकी उर्जा किसी न किसी तरह से तो बाहर निकलेगी हि । न तो उन्हे सही मार्गनिर्देशक मिलता है न वह खुद समझ पाता ऐसी अवस्था में वह कुछ भी , कैसे भी , किसी भी समय में अपने आपको अनियन्त्रित कर सकता है और । अपने आपको आश्चर्यजनक तरिके से उपर उठा सकता है । आज की युवा ऐसी हि विषम घडी में जाकर बैठी है उन्हे सही मार्ग दर्शक कि तलास है मगर मिल नहीँ रहा । समझाने वाला मिल तो जाते मगर आन्तरिक बातों को अच्छे तरह से समझ नहीं पाते । वही पढी हुई सैद्धान्तिक बातों के आधारपर युवाके अन्दरका समस्याका निराकरण निकालते हैं । ब्यवहारिक तौर पे कोई प्रयास नहीँ होता जन्म से लेकर पुस्तक रट ली पास कर गए परीक्षा और बन गए विश्लेषक समस्या समाधान करने वाला विशेषज्ञ । ऐसी अग्रज से आज की युवा क्या सिखे और क्या समझे । कहनेका मतलब यह नहीं है कि सहि मार्गदर्शन नही मिलते । होते हैं मगर उन सबको उस स्तर से काम करने नहीं दिया जाता बिचमें मे अनेक राजनितिक तमासा बनाकर उनको रास्ते से साफ किया जाता है । यही आजकी विषम परिस्थिती है । लोक कहते कुछ हैं  और करते कुछ । चरित्र और ब्यवहार में एकरुपता नहीं होती इसी बजह से युवा चिढती है । चिल्लाती है और उद्दण्डता मचाती है ।  

-Yogi  balak
भाग एक समाप्त ...................... भाग दो की प्रतीक्षा करें .. धन्यवाद्

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